लकड़हारा और सोने की कुल्हाड़ी की कहानी

एक दिन की बात है कि वो तालाब के पास में एक पेड़ काट रहा था, उसी समय उससे गलती हुई कि उसके कुल्हाड़ी उसके हाथ से उसी तालाब में गिर जाती ...

बहुत समय पहले की बात है एक गांव में एक लकड़हारा रहता था वह अपनी आजीविका के लिए दिन भर जंगल से लकड़ी काटता था और रोज शाम को पास के एक बाजार में जाकर बेचता था।

एक दिन की बात है कि वो तालाब के पास में एक पेड़ काट रहा था, उसी समय उससे गलती हुई कि उसके कुल्हाड़ी उसके हाथ से उसी तालाब में गिर जाती है। उस नदी का बहाव और गहराई दोनों ज्यादा थी। उस लकड़हारे ने अपनी कुल्हाड़ी को बहुत खोजा पर वह कामयाब ना हुआ, अतः वह हार मानकर नदी किनारे बैठ गया और रोने लगा।

उसके रोने की आवाज सुनकर नदी की देवी उठी और उस लकड़हारे से पूछा कि क्या हुआ? क्या हुआ? तक लकड़हारे ने अपनी कहानी बताई, तब पानी की देवी को उस पर दया आ जाती है और पानी की देवी उस गरीब, मेहनती लकड़हारे की मदद व सहयोग करने की पेशकश करती है।

फिर क्या था वह नदी की देवी उसकी मदद के लिए एकदम से गायब हो गई और नदी के अंदर से एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर प्रकट होती है और उस गरीब लकड़हारे से पुछती है कि क्या यह सोने की कुल्हाड़ी उसकी है ?

लकड़हारा इस पर उत्तर देते हुए कहता है कि नहीं! मैं तो गरीब आदमी हूँ इसलिए यह मेरे नहीं है। तब फिर एक बार फिर नदी की देवी पानी के अंदर जाती है और इस बार चांदी की कुल्हाड़ी लेकर वापस लैटती है। लेकिन वह आदमी इस बार भी कहता है यह मेरी नहीं है।

इतने के बाद उस नदी की देवी एक बार फिर पानी में गायब हो जाती है और इस बाद एक लोहे की कुल्हाड़ी लेकर वापस आती है।

तभी वो गरीब लकड़हारा खुश होकर कहता है कि यह उसकी ही कुल्हाड़ी है, जिस पर नदी की देवी उस गरीब लकड़हारे पर खुश होकर वह सोने और चांदी दोनों कुल्हाड़ीयों को उसको उपहार स्वरूप दे देती है।


सीख (Moral of Short Story)- ईमानदारी सबसे उत्तम नीति है।

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