Lat-Shayari-2-Line
याद तेरी आज भी रोज बड़ी शिद्दत से आती है, ये इक लत है जो बदल नहीं पाती है।
तलब लगती है तुम्हारी, मेरी ल़त बन गये हो तुम।
इतने नज़दीक न तुम आया करो, मेरी लत किसी किसी अफ़ीम से कम नही।
वो पिला कर जाम लबों से अपनी, नशीली मुहब्बत की लत लगा दी।
आरजू थी तुम्हारी तलब बनने की, मलाल ये है कि तुम्हारी लत लग गयी।
सुनो तुम लत हो मेरी, तुम्हे छोड़ना अब मुमकिन नहीं।
एक बार इश्क़ चखा था, अब तो लत लग गयी।लत Status
लत तेरी लगी है नशा सरे आम होगा, हर लम्हा मेरे इश्क का अब तेरे नाम होगा।
नशा कोई भी हो जानलेवा ही होता है, यक़ीनतब हुआ जब तेरी लत लगी।
नशा शराब का होता तो उतर गया होता, लत तो तेरे इश्क़ की लगी है जान के साथ जाएगी।लत शायरी 2 लाइन
दोस्तों लत मोहब्बत की सबको लगती नहीं, जिसको लगती है उसमें खुदगर्जी बचती नहीं।
ये इश्क़, उस बुरी लत की तरह है, जो सिर्फ लूटती है, पर छूटती नहीं है।
अपने होने पर इतना भी ना इतरा, लत हैं तू चाहत नहीं।
जान से ज्यादा लत संभाले फिरते हैं, हर जेब में गुटखा डाले फिरते हैं।लत शायरी 2 Line
नफ़रत हैं मुझे गन्दगी से, लोग मुँह में गन्दगी पाले फिरते हैं।
तुझे पता हैं हश्र ज़िन्दगी का फिर भी ना जाने क्यू? तुझे जीए जाने की लत हैं।
उसने हर नशा सामने लाकर रख दिया, और कहा सबसे बुरी लत कौन सी है? मैंने कहा तेरे प्यार की।lat Shayari
जिन्दगी लत है हर लम्हे से बेपनाह मोहब्बत है, मुश्किल और सुकून की कशमकश में जिंदगी यूं ही जिये जाता हूँ।
कम्बख्त चाय को मेरी लत लग गयी हैं, चाहती हैं मेरे होठो से लगाना, ना जाने कैसा सुख मिलता हैं, मेरी जीभ जला कर।
वो पूछ रहे मुझसे मुहब्बत है या जरूरत, हमने हंस कर धीरे से कहा बुरी लत।
आरजू थी तुम्हारी तलब बनने की, मलाल ये है कि तुम्हारी लत लग गई।
लत तुम्हारी लगी थी, इलज़ाम शराब पर आया।
सिर्फ मुझे ही नहीं इन चाय की कपो को भी, लगी हैं लत तेरे होठों की।
अजीब लत लगी हैं उसे अकेले जीने की दोस्तों, जनाजे को भी जरुरत होती हैं चार कन्धों की।
लत तेरी ही लगी है, नशा सरेआम होगा, हर लम्हा जिंदगी का सिर्फ तेरे नाम होगा।
मेरी इन पागल आँखों को, लत लग गयी तुझे देखने की।
हां तेरी मुझे लत हैं, तभी तो ये हालत हैं, काश तू चरस होती ? तो मुझे तेरी लत होती।
लग गयी हैं लत तो सेहत सम्भालिये, कहते हैं लोग इश्क़ की तासीर बहुत गर्म होती हैं।
लत लग गई हमे तो अब तेरे दीदार-ए-हुस्न की, इसका गुन्हेगार किसे कहे खुद को या तेरी कातिल अदाओ को?
एक सिगरेट सी मिली, तू मुझे ऐ आशिकी, कश एक पल का लगाया था, लत उम्र भर की लगी।
लत ऐसी लगी है कि तेरा नशा मुझसे छोड़ा नहीं जाता, हकीम भी कह रहा है कि इक बूँद इश्क भी अब जानलेवा है।
ना जाने कौन सा नशा हैं तेरे होठो में, जब से चूमा हैं तब से लत सी लग गयी हैं।
इस कदर अपनी नशीली निगाहो से ना देखो, मुझे इनकी लत लग जायेगी।
मेरी इन आँखों को लत सी लग गयी हैं, बस तुम्हे देखने की बताओ हम क्या करे?
यारा लत हो तुम मेरी, तुझे अब छोड़ना मुमकिन नहीं।
बड़े ही बेदर्द निकले हमारे चाहने वाले, चाहत के दिए जलाकर अंधेरों की लत लगा दी।
किस्से लिखना छोड़ दिया है अब, इश्क़ ए मर्ज लिखने की जब से लत लगी है।
मेरी दो ही लत हैं, एक तू और दूसरी चाय।
इसे तेरी लत कहु या, बुरी आदत इश्क़ की? जितना छोड़ना चहु तुझे, उतनी तलब बढती हैं।
अकेले बैठ खाली पन्नो पर तुझे, उतारने की अब लत सी लग हैं।
तुम शराब की बात करते हो, मुझे तो इश्क़ की लत ले डूबी।
नशा चाय का हो या लत तेरी, मज़ा तो दोनों में ही आता हैं।
मुझे मेरी चाय की ही लत ठीक थी, तेरी लत ने तो मुझे बिगाड़ के रख दिया।